स्वप्न देखना कितना सहज-सुखद होता है, पर उसे साकार करने में कितना पित्ता-पानी एक करना पड़ता है।
हर नए सार्थक आन्दोलन को क्रमानुसार तीन तरह की प्रतिक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। पहले लोग उसका मजाक उड़ाते हैं, फिर लोग उसका विरोध करते हैं और अन्त में उसे स्वीकार कर लेते हैं।
गुलामी बहुत बड़ा अभिशाप है, मानसिक गुलामी उससे बड़ा। लड़कपन में जिसे अपने माता-पिता का वात्सल्य नहीं मिलता, वह उसका प्रतिरूप जीवन-भर खोजता रहता हैजीवन में हम जिन चीजों को पाने की कामना करते हैं, जितना सुख-सपना देखते हैं, जिन्हें साकार करने की सौ मुसीबतें उठाते हैं जब वह संयोगवशात मिल जाती हैं तो उनके मिलने का सुख कितना क्षणस्थाई होता है! मिलने के साथ ही मिलने का सुख समाप्त हो जाता है।